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इन्टरनॅशनल बुद्धीस्ट मिशन ट्रस्ट जालंधर (पंजाब)

मान्यवर सप्रेम जयभीम,
बोधिसत्व डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी ने कहा है “शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पियेगा वह दहाड़ेगा” व्यक्तित्व विकास एवं सामाजिक उत्थान के लिए जिस प्रकार की शिक्षा आवश्यक है उस शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार तथागत भगवान बुद्ध के समय से किया जा रहा है; फिर चाहे वह उनके अनुयायियों की मदद से हो या उनके द्वारा स्थापित विभिन्न विश्वविद्यालयों के माध्यम से बौद्ध धर्म ने हमेशा से ही शिक्षा को सर्वोच्च स्थान दिया है. बौद्ध काल से वर्तमान समय तक का इतिहास यह बताया है कि शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने वाले बहुजन महानायकों का विरोध वर्णव्यवस्था में विश्वास रखने वाले समर्थकों द्वारा किया गया. महात्मा जोतिबा फुले, सावित्रीचाई फुले, छत्रपती शाहू महाराज एवं डॉ बाबासाहेब अंबेडकर जी ने दलित एवं पिछड़े समाज को शिक्षित करने के भरकस प्रयास किए. आज जब यह समाज शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने लगा है तो सरकार द्वारा स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के उपलक्ष में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू किया जा रहा है. इस शिक्षा नीति के भविष्य की शिक्षा पद्धति पर क्या परिणाम और दुष्परिणाम हो सकते हैं। इस विषय पर गहन विचार-विमर्श करने हेतु इंटरनेशनल बुद्धिस्ट मिशन ट्रस्ट जालंधर द्वारा बौद्ध शिक्षा संगोष्ठी का आयोजन किया गया है. इस संगोष्ठी में आप सादर आमंत्रित हैं.
उद्घाटक
विश्वज्ञान के प्रतीक कहलाये गये परमपूज्य डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जयंती पर्व के उपलक्ष में प्रबोधनात्मक कार्यकम ।

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